मैं , एक फौजी और फौजी होने के साथ साथ एक इंसान। आज मैं तिरंगे में लिपटे अपने कफ़न से बोल रहा हूँ, ये आवाज़ मेरे मृत शरीर की है। आप सोच रहे होंगे कि लोग कहते हैं फौजी तो मरता नहीं , अमर होता है । मगर मेरे अमर होने के साथ साथ, कोई तो मरता भी होगा । किसी का बेटा , किसी का पोता, किसी का बाप , किसी का चाचा, किसी का भाई तो किसी का पति। लोग अक्सर इन योद्धाओं को क्यूँ भूल जाते हैं ? उन्हें तिरंगे में लिपटा मेरा मृत शरीर तो दिखता है किंतु सफ़ेद साड़ी में लिपटा चलता फिरता इंसान क्यूँ नहीं?
यह सच है कि मैं मौत से नहीं डरता। आखिर कफ़न सिर पर बाँध कर जो निकला था। पर एक डर मुझे हर वक़्त सताता है। मेरे अपनों का डर। मेरे बाद उनका क्या होगा ? यह डर मुझे हर वक़्त जकड़े रहता है। इस वक़्त भी उसी डर में जकड़ा हूँ । मेरा देश जिसके लिए मैं अपनी जान भी देने को तैयार हूँ वो मुझे जीते जी तो बहुत इज़्ज़त देता है मगर मेरे मरण उपरान्त, माफ़ कीजियेगा मेरे शहीद होने के उपरान्त, उनके लिए मैं केवल माला चढ़ी एक तस्वीर, कुछ मैडल्स या गाँव के चौराहे पर बनी मूर्ती ही क्यों रह जाता हूँ ? क्यों भूल जाते हैं लोग की एक फौजी के शहीद होने के साथ साथ कुछ इंसान भी मरे हैं। क्यूँकि एक फौजी देश की सरहद तो बचाता है पर साथ ही साथ एक घर भी चलाता है। एक ऐसा घर जो बड़े बड़े शहरों में नहीं दिखता। एक ऐसा घर जो किसी गाँव या कसबे की एक कच्ची सड़क के किनारे अपनी फूस की छप्पर को बदल पक्की छत होने के लिए मेरे इंतज़ार कर रहा है। और छत के नीचे कुछ सपने जिनका कभी मैं भी हिस्सा था और जिनकी हकीकत का मैं अब केवल किस्सा हूँ।
पर अब मैं शहीद हो चुका हूँ। और आप? आप तो ज़िंदा हैं। तो क्या आप याद रखेंगे मेरे सपनो को ? क्या आप पक्का करेंगे मेरी फूस की कच्ची छत को ?