
बुद्ध – एक नाम जो पूरे संसार में प्रचलित है। एक इंसान जिसने विश्व कल्याण में पूरा जीवन लगा दिया और अपने ज्ञान से भगवान का दर्ज़ा पा लिया।
कहते हैं संसार सिर्फ़ आपकी उपलब्धियों को याद रखता है और संघर्षों को भुला देता है। जैसे संसार ने बुद्ध के होने में सिद्धार्थ को भुला दिया। वही सिद्धार्थ जो बुद्ध होने से पहले एक आम इंसान था। क्या कभी आपने सोचा है सिद्धार्थ के बारे में? क्या कभी सोचा है कितना संघर्ष करना पड़ा होगा सिद्धार्थ को बुद्ध हो जाने में?
समाज के जीने के तरीक़े को सही ना मानना, अपने माता-पिता/ मित्रों को दिल की बात समझा ना पाना, अपने अंतर्मन को उन बातों का यक़ीन दिलाना जिन्हें पूरी दुनिया नकारती है, दिन रात अपने अस्तित्व की तलाश में उलझे रहना और इन ख़्यालों की गहराई में डूब एक दिन खुद को ही भूल जाना, कितना मुश्किल रहा होगा ना सिद्धार्थ का खुद को पाना और अंत में सब छोड़ कर बुद्ध बन जाना?
भले ही हम भूल जाएँ सिद्धार्थ को मगर सच तो यह है कि हम सब में एक सिद्धार्थ छिपा है। हर शख़्स existential crisis से जूझ रहा है। वो क्या है, क्यूँ है, आख़िर ज़िंदगी के साथ कर क्या रहा है और कब तक ऐसे ही जीता रहेगा, ये विचार हमें रातों को सोने नहीं देते।
तीसरे paragraph को फिर से पढ़िये तो आप उसमें खुद को ही पाएँगे।
बुद्ध भी कुछ अलग नहीं थे आप से और मुझसे। अगर हम सब में एक सिद्धार्थ दबा है तो हम सब में एक बुद्ध भी छिपा है। जानता हूँ आसान नहीं है सिद्धार्थ से बुद्ध हो जाना, मगर असम्भव भी तो नहीं है। ज़रूरत है तो सिर्फ़ उन कुछ तरीक़ों को अपनाने की जो सिद्धार्थ ने अपनाए:
- खुद पर और अपनी सोच पर विश्वास – फिर चाहे वो दुनिया से कितने ही अलग हों
- बंधनो से आज़ाद हो जाना – मेरा मतलब रिश्तों से नहीं, रिश्तों की लाशों और पुरानी यादों से अलग हो जाना है
- यात्रा पर अकेले निकल जाना – जब कभी आप खुद को उलझा पाएँ, एक यात्रा पर अकेले निकल जाएँ, अकेली की गई यात्राएँ आपके मस्तिष्क को आज़ाद कर देती हैं
- जटिलताओं को सरल कर देना – हर समस्या का हल है अगर हम उसे जटिल मानना छोड़, उसे सरल जान उसके समाधान के बारे में सोचें
- परोपकार – जब आप कुछ ना कर सकें तो प्रतिदिन 1 परोपकार कीजिये । सिर्फ़ 1 । यक़ीन मानिए, दूसरों को दी गई मुस्कुराहट आपको एक अनूठे सुख की प्राप्ति करवाएगी और अपने सारे असमंजस भूल जाएँगे।
याद रहे, आपको बुद्ध होना है अपने लिए, दूसरों को लिए नहीं। बुद्ध ने भी समाज कल्याण से पहले खुद को पाया था। विश्व को अपने उपदेशों को जीतने से पहले उन्होंने अपने अंतर्मन के द्वन्द को जीता था।
तो बताइएयेगा मुझे, कितना मुश्किल होता है सिद्धार्थ से बुद्ध हो जाना?
Provoking! Ye padhna bhi ek yaatra ki tarah hai.. end tak aate aate mind ek relief mehsus karta hai 🙂
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Aap to padhte padhte hi Buddh hone ki pehli seedhi chadh gaye.
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True. It would have been very difficult for Siddharth to be Buddha. The existential crisis is only for those who’re trying to figure out who they really are.
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Yes, an Existential crisis is the first step to search for self. People consider it an illness or it troubles them because they don’t know what they are going through is something that every enlightened human on earth faced once.
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