
जब सर्द मौसम, हवा से सारी नमी सोख लेती है,
एक वृक्ष, अपनी ज़रूरतों का बोझ कम करते हुए,
पत्तों को अपने तन से उतार,
खुद को एक सूखे तने में बदल लेता है ,
ठूँठ सा खड़ा ऐसा वृक्ष,
निर्जीव सा प्रतीत होता है,
किंतु यह उस वृक्ष की एक कला है,
प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने की कला।
खुद को जड़ कर,
भीतर अपना रस संजोए,
वृक्ष उस वक्त के इंतज़ार में है,
जब हवा में नमी लौट आएगी,
और प्रकृति की कठोरता पिघलने लगेगी।
तब वृक्ष अपनी जड़ता से बाहर निकल आएगा,
सख़्त, स्थिल पड़ा शरीर,
मोम सा नरम बन जाएगा,
उसके अंग-अंग से, जीवन फूट पड़ेगा,
वृक्षव एक बार फिर,
हरे पत्तों, रंग बिरंगे फूलों
और रसीले फलों से लद जाएगा।
हम मनुष्यों के जीवन में भी तो ऐसा वक्त आता है,
जब परिस्थितियाँ, सर्द हवाओं सी चुभने लगती हैं,
आस पास सब सूखने लगता है,
जीवन का रस, ख़त्म होता सा प्रतीत होता है।
हम भी अपनी भावनाओं के बोझ को उतार,
एक सख़्त कवच पहन,
अपने अंदर के जीवन रस को बचाए रख सकते हैं,
हम भी वृक्ष की ही भाँति संघर्ष कर,
प्रतिकूल परिश्तितियों से लड़ सकते हैं,
उस वक्त के इंतज़ार में,
जब परिस्थ्तियाँ एक बार फिर अनुकूल होंगी,
क्यूँकि परिस्थितियाँ कभी एक सी नहीं रहती।
परिस्थितियाँ कितनी भी अनुकूल हो,
जीवन को अपने भीतर संजोय रखिए।
यही इस वृक्ष का संदेश है,
सूखे वृक्ष का संदेश।