शाम ढले, रात का सन्नाटा फैला ही था
कि एक बादल ने अपना मधुर संगीत छेड़ दिया,
रिमझिम-रिमझिम,
टपक टपक, टप-टप,
झींगुरों ने इस नये संगीत के आगे नतमस्तक हो,
अपना आज का गीत समारोह रद्द कर दिया है,
पिछली कई रातों से
वे इस समारोह को निरंतर अंजाम दे रहे थे,
मगर वे सब इस वक्त क्या कर रहे होंगे?
मेरी ही तरह अपने बिस्तर में पड़े,
गरमाहट का कम्बल ओढ़ इस संगीत को सुन रहे होंगे,
या अपने हम सफ़र का हाथ थाम,
कदम से कदम मिला आपस में थिरक रहे होंगे,
पौधों के इर्द गिर्द और घास के बीच-बीच,
एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर थिरक-थिरक।
बग़ल में मेंढकों को का ऑर्केस्ट्रा,
साँसें गले में थामे
अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा होगा,
रिमझिम-रिमझिम,
टपक टपक, टप-टप,
के संगीत की धुन के थमते ही उन्हें
टर्र टर्र टरर्र का गीत गा,
इस संगीत को एक राग का रूप देने के लिये।
लगता है पृथ्वी पर होते इस संगीत उत्सव को देख,
आसमान में बादलों का हुजूम उमड़ आया है,
अब असंख्य बादल पानी बरसाए जा रहे हैं,
संगीत निरंतर बज रहा है,
झींगूर नाचे जा रहे हैं,
मेंढक टर टरा रहे हैं,
धरती भी झूम उठी है,
महसूस होता है,
प्रकृति आज संगीत उत्सव मना रही है,
और यह उत्सव पूरी रात चलेगा।
What an imagination! Well written 👏
LikeLike