धरती के चारों ओर पसरा नीला आसमान,
रात ढलते ही विलुप्त कैसे हो जाता है?
वो जो जीवन का सबसे बड़ा सच है
वो अंधेरे में कहीं खो कैसे जाता है?
क्या आसमान सच है या केवल कल्पना?
सच तो यह है कि आसमान कल्पना है,
कोरी कल्पना।
सूरज के प्रकाश में कई रंग हैं,
लाल, पीला, हरा, नीला,
वो जिसे हम आसमान कहते हैं,
वो तो केवल प्रकाश का एक खंडित अंश है,
नीला रंग,
अगर आसमान कल्पना है
तो सच क्या है?
सच है बादल,
किंतु आसमान तो सतत है,
और बादल विरल,
अर्थात् आसमान तो सदा से दिखता रहा है,
मगर बादल तो गाहे बगाहे ही नज़र आते हैं,
तो फिर आसमान कल्पना और बादल सच कैसे?
क्या सच वही है, जो दिखता है?
जो दिखता नहीं, वह सच नहीं?
जो सदा के लिये नहीं, क्या वो सच नहीं?
जो लोग हमारे जीवन में आकार चले गए,
वो भी तो सतत नहीं,
क्या वे सभी काल्पनिक हैं?
और उनकी यादें जो सतत हैं?
क्या वो सच है?
या यादें भी केवल कल्पना हैं?
अगर तुम्हारी याद भी कल्पना है,
तो तुम क्या हो?
मेरा सच या मेरी कल्पना?
अगर आसमान कल्पना है
और बादल सच,
तो तुम एक कल्पना हो,
और तुम्हारी यादें सच।
