सर्दियों की एक ठंडी रात और गर्म सवेरे के बीच आँख कुछ जल्दी खुल गई। वक्त देखा तो पाया कि सुबह के 5 ही बजे हैं। कई दिनों बाद मैं सूरज से भी पहले उठ गया था। मोबाइल बग़ल में रख मैंने आँखें फिर मूँद ली इस उम्मीद में कि नींद अभी बरौनी पर बैठे उबासियाँ ही ले रही होगी और आँखों को बंद पा फिर से भीतर लौट आयेगी। मस्तिष्क को भी समझाया कि मन मेरा चिड़िया ज़रूर है मगर शरीर इंसान का ही है और दिसम्बर महीने की सुबह के 5 बजे, ज़रूरत से कहीं ज़्यादा जल्दी है उठ जाने के लिये। चहचाने का काम पंखों वाली चिड़िया पर छोड़ मुझे नींद को बाहों में जकड़ थोड़ा और सुस्ता लेना चाहिए। कुछ पल आँखें मूँदें रहने पर ज्ञात हुआ कि नींद बरौनी से नदारद थी, करवटें बदल मैं नींद को बिस्तर पर इधर उधर तलाशने लगा। क्या पता जगह ख़ाली देख वो मेरे बग़ल में आ लेटी हो। कई करवटों के बाद भी नींद ना मिली तो मन ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ा दिया। तुम्हारे चले जाने के बाद से मैं अक्सर अंधेरे में हाथ बढ़ा तुम्हारे हाथों को तलाशता हूँ। भौतिक विज्ञान में त्री आयामी अंतरिक्ष को वक्त के आयाम से भी जोड़ा जाता है। अंतरिक्ष में फैला काला अंधकार ही समय है। सूर्य की रौशनी के बिना समय रूपी इस आयाम में, में अक्सर यात्रा करता हुआ बीते वक्त तक पहुँच जाता हूँ और पिछला जिया हुआ एक बार फिर से जी लेता हूँ। वक्त के इस अंधेरे आयाम में मन ने अक्सर तुम्हें पाया भी है और छुआ भी। उसी अभ्यास को दौहराता हुआ हाथ बिस्तर की सीमाओं को लांघ बेड से थोड़ा लटक जाता है। पेट के बल लेटा मैं हाथ को ही लटकाए कलाइयों को घुमा तुम्हारे हाथों को तलाशने लगा। कितना सुख था मेरी इस कोशिश में। निराशा का रत्ती भर भी निशान नहीं। जैसे मन को यक़ीन हो कि तुम किसी भी पल अपना हाथ बढ़ा मेरी उँगलियों को छू लोगी और बीते वक्त की हर सुबह की तरह आज भी मेरी उँगलियों के बीच की खाई तुम्हारी उँगलियों से भर जाएगी। मैं कुछ देर युँ ही लेटा रहा।
तीसरे, से चौथे आयाम को जोड़ मैं असल दुनिया और नींद की दुनिया के बीच कहीं झूलता हुआ सुबह का इंतज़ार करने लगा। ना जाने वो सपना था या हक़ीक़त मगर मुझे अपनी उँगलियों की नोक पर तुम्हारे छुअन की गर्माहट महसूस हुई, जैसे तुमने मेरी उँगलियों के सिरे पर अपनी उँगलियों के सिरे रख दिये हों। मेरा रोम रोम सिहर उठा। क्या किसी दूसरे आयाम में तुमने भी मेरी ओर हाथ बढ़ाया था? क्या मैं चौथे से पाँचवे होते हुए छठे आयाम में पहुँच सच में तुम्हें छू पा रहा था? वैज्ञानिक कहते हैं कि छठे आयाम में दो अलग दुनियाँ, अलग समय में एक दूसरे से मिलती हैं। किसी कवि की कल्पना की हक़ीक़त सी। मैंने आँखें ज़ोर से मींच ली। अगर ये सपना है तो मैं इसे टूटने नहीं देना चाहता और अगर किसी आयाम की हक़ीक़त है तो मैं इसे एक लम्बे समय तक जीना चाहता हूँ। गरमाहट सिरे से होती हुई उँगलियों पर फैलने लगी जैसे तुम एक बार फिर मेरी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फँसा मुझे नींद से जगाना चाह रही हो। गरमाहट के उस एहसास से मेरी उँगलियाँ फड़कने लगी। पूरे शरीर का कतरा कतरा लहू उँगलियों में उतर तुम्हें छूने को तड़प उठा। बाक़ी का शरीर ठंडा पड़ा जा रहा था और उँगलियों की तपिश बढ़ती जा रही थी। मैं आँखें मूँदें पड़ा रहा, तुम्हारे हाथों के स्पर्श को महसूस करता हुआ। इंसानी मन जितना चंचल होता है उतना ही लालची भी। तुम्हारे स्पर्श मात्र से मन शांत ना हुआ और तड़प उठा तुम्हें देखने के लिये। मन के आगे मस्तिष्क ने हार मान ली और पलकें झपक उठीं। मैं तय नहीं कर पाया की एक लम्बे सपने से जाग उठा हूँ या मैं सोया ही नहीं था। नज़र अपने दाहिने हाथ पर जा टिकी जो तुम्हें छूने की चाह में बिस्तर से उतर मुझे छोड़ने का मन बना रहा था। बाक़ी का कमरा अब भी अंधकार में डूबा था मगर मेरा हाथ जगमगा रहा था। अंधेरे कमरे में खिड़की के कोने से प्रकाश की एक किरण सीधे मेरे दाहिने हाथ पर पड़ रही थी। हाथ के ठीक ऊपर प्रकाश में कुछ कण तैर रहे थे। ये कण गुरुत्वाकर्षण के नियम को झुठला हवा में ऊँचे उठते हुए प्रकाश की किरण के संग खिड़की के उस कोने से बाहर की ओर तैर रहे थे। ये तैरते हुए कण तुम ही थीं क्या? क्या तुमने सच में मुझे एक बार फिर से छुआ था? क्या तुम सच में लौट आई थीं मुझे छूने के लिये? या तुम सदा यहीं थीं मेरे इर्द गिर्द और मैं तुम्हें देख ही नहीं पाया? मैं इन कणों को पहचानता हूँ। रात भर तुम्हारी तपिश के बाद उस ठंडी सुबह में देखा था मैंने तुम्हें। ये वही कण हैं जो तुम्हारी चिता की राख से उठ वायुमंडल में विलुप्त हो रहे थे।
उस सुबह के बाद से में हर रोज़ अंधेरे कमरे में आती प्रकाश की किरण की ओर हाथ बढ़ा देता हूँ। मैं जानता हूँ तुम हर वक्त मेरे इर्द गिर्द ही रहती हो मगर इस त्री आयामी दुनिया के प्रकाश में नज़र नहीं आती। अंधेरे कमरे में पसरती प्रकाश की किरण हवा में तैरती हर उस महीन चीज़ को भी हमें दिखा देती है जो दिन के चकाचौंध में हमें नज़र नहीं आती। मैं इन कणों में तुम्हें देख पाता हूँ, महसूस कर पाता हूँ। हर सुबह!