पतझड़ के रूखेपन में
एक आख़िरी फूल को पा,
मधु का गुनगुनाना।
सर्दियों की धूप सेकती मक्खियों के मोहल्ले में
उनका भिनभिनाना,
कीड़े और मक्खियों का स्वाद चख,
किसी नन्ही चिड़िया का चहकना,
पूर्णतः नीले आसमान के कैन्वस में पीले सूरज का चमकना,
चमकते सूरज की तपिश से घास का पीला पड़ना,
वर्ष की आख़िरी स्वादिष्ट दावत का,
लुत्फ़ उठा घोड़ों का हिनहिनाना,
बची खुचि घास से पेट भर,
भेड़ों के झुंड का डंडी धार में,
जल स्त्रोत की ओर बढ़ना,
भेड़ों से जान बचाकर भागते,
जल का कलरव करते हुए,
नीचे की ओर पवन की गति सा दौड़ पड़ना,
पवन के एक झौंके की छुअन से,
पेड़ों का झूम उठना,
क़ब्रिस्तान की खामोशी ओढ़े जंगल का जीवित हो उठना।
इस संसार में मेरी अकस्मात् उपस्थिति से,
इन सभी की दिनचर्या में फ़र्क़ ना पड़ना,
कितना सुखदायक है ना,
जंगल के बीच एक ऐसे,
घास के मैदान का मिल जाना,
और प्रकृति के इस मेले में
एक इंसान का विलुप्त हो जाना।