
शब्दों और अर्थों में फँसी है ये दुनिया,
जज़्बातों,एहसासों से परे है ये दुनिया,
ना दिन का पता ना रात का ठिकाना,
इन्हें तो बस निरंतर दौड़ते जाना,
जीने की तरकीबें ढूँढे हर कोई,
पर खुद ज़िंदगी से परे है ये दुनिया,
अस्त व्यस्त सी पड़ी है ये दुनिया,
हौसलों को अस्त कर,
ना जाने क्यूँ इतनी व्यस्त है ये दुनिया!!