मैं और आप हर दिन बदल रहे हैं। हम सभी आगे की ओर बढ़ रहे हैं। हर देश प्रगति की ओर अग्रसर है। मानव धरती से ऊँचा उठ, चाँद से होता हुआ ब्रहस्पति को पार कर अरुण (Uranus) ग्रह तक जा पहुँचा है। मगर इस यात्रा का परिणाम क्या है?
पैदा होने से जीवन के अंत तक हमें एक ही बात बताई जाती रही है कि जीवन एक यात्रा है। हमें जीवन में सफल होना है और आगे बढ़ते रहना ही सफलता की कुंजी है। होश सम्भालने से जीवन के अंत तक हम दौड़ते रहते हैं – चूहा दौड़। आगे वाले की पूँछ देख कर दौड़ते रहो और मौक़ा पाते ही उसके ऊपर से चढ़कर उससे आगे निकल जाओ, फिर उसके अगले से आगे, फिर और आगे। सबसे आगे कौन है ये किसी को नहीं पता। सबसे आगे वाला चिल्ला कर कहता भी तो नहीं कि मैं जीत चुका हूँ। ये सबसे आगे वाला है कौन? जो अभी भी दौड़ा चला जा रहा है। क्या उसे पता भी है कि वो सबसे आगे दौड़ रहा है? या सबसे आगे वाला भी किसी के पीछे दौड़ रहा है? क्या हम सभी एक घेरे में दौड़ रहे हैं? जीवों में सबसे बलशाली जीव मानव की ये कैसी दौड़ है?
महान देशों के अहंकार की रक्षा करते आपसी युद्धों में हर दशक में लाखों लोग जीवन को खो रहे हैं। खुद को महान बतलाते एक देश में 190,00,00,000 (190 million) इंसान हर रात भूखे ही सो जाते हैं। प्रति वर्ष, लाखों नई तकनीकों का बखान करते इंसानों के बीच 1,00,000 (1million) इंसान एक वर्ष में भूख से प्राण त्याग रहे हैं। हवा विहीन ब्रह्मांड में रहना सीख चुके इंसानों की पृथ्वी पर एक वर्ष में 67,00,000(6.7Million) इंसान प्रदूषित वायु से मर रहे हैं। चाँद और मंगल पर जल तलासते इंसानों में से 4,85,000 हर वर्ष धरती पर दूषित जल से मर रहे हैं। ये कैसी उड़ान है इंसानों की, जो उनका ज़मीन पर जीना दूभर कर रही है। ये कैसी प्रगति कर रहा है इंसान?
मानव ऊँचा उठ रहा है तो मानवत गिर क्यूँ रही है? आख़िर सभी देश किस ओर अग्रसर है? हम किस दिशा में चल रहे हैं? मैं और आप दुनिया में क्या बदल रहे हैं?
चूहा दौड़ से वक्त मिले तो सोचियेगा। आप किस ओर बढ़ रहे हैं? आपकी सफलता का पैमाना क्या है? पृथ्वी देशों से बनी है और देश समाज से। क्या हमारे समाज को सफल इंसानों की ज़रूरत है या सजग इंसानों की? आप अपने बच्चों को किस ओर ले जा रहे हैं? आप उन्हें सफल बनने की दौड़ में शामिल कर रहे हैं या सजग बना रहे हैं? शुरुआत घर से होती है, शुरुआत खुद से होती है।