
मैं पेड़ हूँ,
हज़ारों भुजाओं वाला पेड़,
सदियों पुराना पेड़।
मेरी कई पहचान हैं,
कुछ के लिए मैं फलदाता हूँ,
तो कुछ के लिए छाया,
कुछ मुझपर लटके झूलने आते हैं,
तो कुछ मुझ पर चढ़ कर ख़ुशी पाते हैं,
कुछ मेरी सबसे ऊँची टहनी पर बैठ आराम फ़रमाते हैं,
तो कुछ मेरे खोखले तने में घर बसाते हैं,
कोई मुझसे फल पाता है,
तो कोई मेरे पत्ते चबाता है,
हर कोई मुझसे कुछ तो ले जाता है।
पंछियों का घरौंदा,
तो पथिकों का आरामगाह,
बूढ़ों का साथी,
तो बच्चों का सारथी,
ना जाने मेरे कितने ही नाम हैं,
पर मैं तो केवल एक पेड़ हूँ,
एक बूढ़ा तनहा, सिसकता पेड़।
कभी वक्त मिले तो मेरे पास बैठना,
मेरे तने को छूकर, मुझे पढ़ना,
हज़ारों क़िस्से बसे हैं मुझमें,
वक्त मिले तो मुझ में बसी सदियों से मिलना।
जाकर दुसरे मनुष्यों से कहना,
के मैं भी एक जीव हूँ,
साँस लेता हूँ,
और मिट्टी खा कर जीता हूँ,
बस चल फिर ही तो नहीं सकता,
पर सब महसूस करता हूँ,
क्यूँकि मैं पेड़ हूँ,
हज़ारों भुजाओं वाला एक तनहा पेड़।