क्या आपने कभी धरती को ऊपर से देखा है?
नहीं नहीं, मैं विमान यात्रा वाली ऊँचाई की बात नहीं कर रहा। जब आप विमान में ऊपर उठते हैं तो क़रीब से आपको धरती नहीं केवल कंक्रीट के ढाँचे दिखते हैं और फिर आप पलक झपकते ही इतना ऊपर उठ जाते हैं कि धरती से दूर हो जाते हैं। प्रकृति की रचनायें इतनी नन्हीं दिखने लगती हैं की आप उन्हें गौर से नहीं देख पाते।
अगर आपको किसी पंछी की भाँति पृथ्वी को ऊपर उठ मगर क़रीब से देखना है तो पहाड़ों पर आइये। hill station वाली वादियों में नहीं। उनसे सट कर खड़े पहाड़ों पर। अपने आरामदायक होटल के कमरे से निकल थोड़ा ऊपर को चढ़िये। क़स्बे से बाहर, एक पगडंडी ऊपर गाँव की और चढ़ रही होगी, उस तरफ़ बढ़ जाइए। आपका हर कदम आपको परिंदे के परों सा महसूस होगा और आप ज़मीन से ऊँचा उठने लगेंगे। आपको अहसास होगा कि भगवान के सबसे पसंदीदा जीव हम इंसान नहीं, ये परिंदे हैं जो धरती की असली ख़ूबसूरती को ना केवल क़रीब से निहार सकते हैं बल्कि उसे काफ़ी दूर तक देख सकते हैं। ऊपर से काफ़ी दूर तक और काफ़ी स्पष्ट दिखता है।
पगडंडी के अंत में एक गाँव बसता है जो सतह पर तो क़स्बे से केवल कुछ ही दूरी पर है मगर समय के आयाम में एक दशक या कभी कभी तो एक सदी पीछे होता है। यहाँ ऊपर से धरती और भी ज़्यादा खूबसूरत लगने लगती है। पेड़ एक एक करके स्कूली बच्चों से साथ खड़े हो जंगल में बदल जाते हैं। नीचे क़स्बे से शहर को दौड़ती सड़क एक विशाल अजगर सी लोटती दिखती है। नदी अपना आकार बढ़ा दूर तक फैली हुई नज़र आती है। नीचे की छोटी छोटी इमारतें एक रंग बिरंगे सुंदर क़स्बे का रूप ले लेते हैं। ऊँची नीची ज़मीन पठार सी लगने लगती है और नदी के उस पार वाले पहाड़ अपना सफ़ेद ताज सजा पंक्ति में आपके सामने खड़े हो जाते हैं। आप एक पंछी की भाँति काफ़ी दूर तक देख पाते हैं और आँखों के आगे का दृश्य एक खूबसूरत मंज़र में बदल जाता है। आप ने धरती को ऊपर से इतने क़रीब से कभी नहीं देखा होगा। आपने कुदरत की इस सुंदरता का अवलोकन पहले कभी नहीं किया होगा।
पहाड़ हम इंसानों को बिन परों के परिंदा बना देते हैं।
अगली बार किसी हिल स्टेशन पर जायें तो एक बार नज़दीकी पहाड़ के कंधे की सैर बिन परों का परिंदा ज़रूर बनें।


