तीसरे, से चौथे आयाम को जोड़ मैं असल दुनिया और नींद की दुनिया के बीच कहीं झूलता हुआ सुबह का इंतज़ार करने लगा। ना जाने वो सपना था या हक़ीक़त मगर मुझे अपनी उँगलियों की नोक पर तुम्हारे छुअन की गर्माहट महसूस हुई, जैसे तुमने मेरी उँगलियों के सिरे पर अपनी उँगलियों के सिरे रख दिये हों। मेरा रोम रोम सिहर उठा। क्या किसी दूसरे आयाम में तुमने भी मेरी ओर हाथ बढ़ाया था?
Author Archives: HimalayanDrives
तुम सच हो या कल्पना
अंधेरी रातों में,
चाँद बन जाती हो,
सर्द सुबहों में,
गर्म चाय सी लबों को छू जाती हो,
लम्बे सफ़र की दुपहरी में,
पेड़ की छाओं सी मिल जाती हो,
जो ढलने लगे ख़यालों का सूरज,
तो रंगो सी फैल जाती हो,
तुम!
तुम सच हो या कल्पना?
ख़ामोश निगाहें
क्या तुमने कभी किसी को
बिना हाथ बढ़ाए छुआ है?
अपनी पुतलियों से उसे सराहा है?
अपनी निगाहों से उसे चूमा है?
क्या कल्पना क्या सच ?
क्या सच वही है, जो दिखता है?
जो दिखता नहीं, वह सच नहीं?
जो सदा के लिये नहीं, क्या वो सच नहीं?
FAQs about the Pindle App
Questions What is the Pindle app? Pindle is a social media app for travellers & photographers that lets you pin your pictures on the Pindle map. Simply put, you can understand it as a combination of Google Maps & Instagram. Back to Top How does the Pindle app work? Pindle works on a technology calledContinue reading “FAQs about the Pindle App”
Bhrigu Lake Trek
Duration: 3 Nights/4 Days Manali-Kulang Nallah – Mori Thatch – Bota Dug – Bhrigu Lake – Vashisth Hot Springs Brief Details Trek Level: Easy to moderate Trek Distance: 26 km Summers on plains are the time of heat waves and suffering while for mountains, summers mean an opportunity to visit places that remain hidden andContinue reading “Bhrigu Lake Trek”
रविवार की सुबह
वाह! क्या ख़ुशबू है। ना जाने क्यूँ आइने के सामने बैठ कर चाय का स्वाद बढ़ जाता है। पत्ति, लौंग, इलायची और अदरक तो सब बराबर ही डलता है फिर ये अलग स्वाद कहाँ से आता है? क्या ये शक्कर का स्वाद है? या आइने का? या शायद ये रविवार की सुबह का स्वाद है।
बादल और नदी का प्रेम
पाठ १ ऊँचे आसमान में उड़ते एक मदमस्त बादल की नज़र अचानक ही भूतल पर विचरण करती एक शांत नदी पर पड़ती है। बादल यह देखकर अच्म्भित रह जाता है कि नदी में उसे अपना प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा है। वर्षों से यात्रा करते इस बादल ने कभी खुद को इतने स्पष्ट तौर पर नहीं देखा था। उसने तो धरातल पर केवल अपनी परछाई ही पाई थी। कभी ऊँचे पहाड़ों पर तो कभी घास के सपाट मैदान में, कभी जल से भरे सागर कीContinue reading “बादल और नदी का प्रेम”
पूर्णमासी की रात
आज चाँद धरती के निकटतम होगा, खुद को धरती के इतना क़रीब पा, चाँद ख़ुशी से खिल उठेगा, ख़ुशी से वह अपने पूर्ण रूप में लौट, धरती को अपना चमकता चेहरा दिखलाएगा । कई दिनों के इंतज़ार के बाद, ये दोनों चाहनेवाले, एक दूसरे के बेहद क़रीब होंगे, पेड़ नाचने लगेंगे, चकोर चहकने लगेगा, सागर बहकने लगेगा ,Continue reading “पूर्णमासी की रात”
बादल और नदी का प्रेम
बादल अपने ही ख़्यालों में खोया इस बात से अनभिज्ञ था कि नदी अब उसकी ओर ताक रही थी। नदी का मन हुआ की आवाज़ लगा कर बादल से पूछे – ऐ आवारा क्या टुकुर टुकुर ताक रहा है मेरी ओर? पहले कभी कोई नदी नहीं देखी क्या? मगर वह कुछ कह ना सकी, यूँ तो उसने कई बादल देखे थे किंतु यह बादल कुछ अलग सा प्रतीत हुआ। नदी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बादल कुछ उस सा ही है।