वो शाम

यूँ तो भूल गया हूँ मैं तुझे।

तेरे चेहरे को,
तेरी आँखों को,
तेरी बातों को,
तेरी यादों को,
तेरी पलकों के झपकने को,
तेरे लबों के थिरकने को,
संग बिताई उन रातों को,
अलग होती हर सुबहों को,
विदा लेते वक्त,
कभी पूरा ना हो सकने वाले
तेरे वादों को।

मगर…

मैं पेड़ हूँ 

पंछियों का घरौंदा,
तो पथिकों का आरामगाह,
बूढ़ों का साथी,
तो बच्चों का सारथी,
ना जाने मेरे कितने ही नाम हैं,
पर मैं तो केवल एक पेड़ हूँ,
एक बूढ़ा तनहा, सिसकता पेड़।

जंगल के बीच घास का मैदान

किसी नन्ही चिड़िया का चहकना,

पूर्णतः नीले आसमान के कैन्वस में पीले सूरज का चमकना,

चमकते सूरज  की तपिश से घास का पीला पड़ना,

वर्ष की आख़िरी स्वादिष्ट दावत का,

लुत्फ़ उठा घोड़ों का हिनहिनाना

व्यस्त दुनिया

शब्दों और अर्थों में फँसी है ये दुनिया, जज़्बातों,एहसासों से परे है ये दुनिया, ना दिन का पता ना रात का ठिकाना, इन्हें तो बस निरंतर दौड़ते जाना,  जीने की तरकीबें ढूँढे हर कोई, पर खुद ज़िंदगी से परे है ये दुनिया,  अस्त व्यस्त सी पड़ी है ये दुनिया,  हौसलों को अस्त कर, ना जानेContinue reading “व्यस्त दुनिया”

तुम सच हो या कल्पना

अंधेरी रातों में,
चाँद बन जाती हो,
सर्द सुबहों में,
गर्म चाय सी लबों को छू जाती हो,
लम्बे सफ़र की दुपहरी में,
पेड़ की छाओं सी मिल जाती हो,
जो ढलने लगे ख़यालों का सूरज,
तो रंगो सी फैल जाती हो,
तुम!
तुम सच हो या कल्पना?

पूर्णमासी की रात

आज चाँद धरती के निकटतम होगा, खुद को धरती के इतना क़रीब पा, चाँद ख़ुशी से खिल उठेगा, ख़ुशी से वह अपने पूर्ण रूप में लौट, धरती को अपना चमकता चेहरा दिखलाएगा । कई दिनों के इंतज़ार के बाद,  ये दोनों चाहनेवाले, एक दूसरे के बेहद क़रीब  होंगे,  पेड़ नाचने लगेंगे, चकोर चहकने लगेगा,  सागर बहकने  लगेगा ,Continue reading “पूर्णमासी की रात”

शब्दों का स्वाद

शब्द उबल उबल कर,
अंदर ही अंदर पकने लगते हैं,
शब्दों की सीटी बजने लगती है,
कभी छोले की मिठास सी कविता पकती है,
तो कभी राजमा की खट्टास सा छंद,
गाहे बगाहे कहानी की कोई तरकारी भी पक जाती है।

प्रकृति का संगीत उत्सव

अब असंख्य बादल पानी बरसाए जा रहे हैं,
संगीत निरंतर बज रहा है,
झींगूर नाचे जा रहे हैं,
मेंढक टर टरा रहे हैं, 
धरती भी झूम उठी है,
महसूस  होता है,
प्रकृति आज संगीत उत्सव मना रही है,