चौथी चिट्ठी

जानता हूँ हर बार की तरह, ख़त का जवाब इस बार भी नहीं आएगा मगर हर ख़त की तरह इस बार भी मैं अपने सवाल भेज रहा हूँ। 

कहो तुम कैसी हो? सुबह की सैर पर जाना शुरू किया या अब भी सुबह का ख़ालीपन  बस अलसाई सी बिस्तर पर मेरी चाय का इंतज़ार करती काट देती हो? और फिर दफ़्तर के लिए देर हो जाने पर हड़बड़ा कर उठती होगी! है ना? उम्मीद है जल्द बाज़ी में टिफ़िन ले जाना तो नहीं भूलती होगी! शाम के सूरज में झलकता मेरा चेहरा धुंधला तो नहीं पड़  रहा? रात को किशोर कुमार की आवाज़ के संग मेरी याद भी तो चली आती होगी ना सिरहाने तक?