पाठ १ ऊँचे आसमान में उड़ते एक मदमस्त बादल की नज़र अचानक ही भूतल पर विचरण करती एक शांत नदी पर पड़ती है। बादल यह देखकर अच्म्भित रह जाता है कि नदी में उसे अपना प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा है। वर्षों से यात्रा करते इस बादल ने कभी खुद को इतने स्पष्ट तौर पर नहीं देखा था। उसने तो धरातल पर केवल अपनी परछाई ही पाई थी। कभी ऊँचे पहाड़ों पर तो कभी घास के सपाट मैदान में, कभी जल से भरे सागर कीContinue reading “बादल और नदी का प्रेम”
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बादल और नदी का प्रेम
बादल अपने ही ख़्यालों में खोया इस बात से अनभिज्ञ था कि नदी अब उसकी ओर ताक रही थी। नदी का मन हुआ की आवाज़ लगा कर बादल से पूछे – ऐ आवारा क्या टुकुर टुकुर ताक रहा है मेरी ओर? पहले कभी कोई नदी नहीं देखी क्या? मगर वह कुछ कह ना सकी, यूँ तो उसने कई बादल देखे थे किंतु यह बादल कुछ अलग सा प्रतीत हुआ। नदी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बादल कुछ उस सा ही है।