बादल अपने ही ख़्यालों में खोया इस बात से अनभिज्ञ था कि नदी अब उसकी ओर ताक रही थी। नदी का मन हुआ की आवाज़ लगा कर बादल से पूछे – ऐ आवारा क्या टुकुर टुकुर ताक रहा है मेरी ओर? पहले कभी कोई नदी नहीं देखी क्या? मगर वह कुछ कह ना सकी, यूँ तो उसने कई बादल देखे थे किंतु यह बादल कुछ अलग सा प्रतीत हुआ। नदी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बादल कुछ उस सा ही है।
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संवाद
ये क़िस्से कहानियाँ हैं अरुण, वास्तविक जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता। इन वादियों में बैठ पहाड़, नदी, आसमान, बादल इन सबको को निहारते हुए जीवन नहीं बिताया जा सकता। यहाँ आना और कुछ दिन ठहर वापस लौट जाना होता है, शहर में ज़माने में, समाज में।