पाठ १ ऊँचे आसमान में उड़ते एक मदमस्त बादल की नज़र अचानक ही भूतल पर विचरण करती एक शांत नदी पर पड़ती है। बादल यह देखकर अच्म्भित रह जाता है कि नदी में उसे अपना प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा है। वर्षों से यात्रा करते इस बादल ने कभी खुद को इतने स्पष्ट तौर पर नहीं देखा था। उसने तो धरातल पर केवल अपनी परछाई ही पाई थी। कभी ऊँचे पहाड़ों पर तो कभी घास के सपाट मैदान में, कभी जल से भरे सागर कीContinue reading “बादल और नदी का प्रेम”
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संवाद
ये क़िस्से कहानियाँ हैं अरुण, वास्तविक जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता। इन वादियों में बैठ पहाड़, नदी, आसमान, बादल इन सबको को निहारते हुए जीवन नहीं बिताया जा सकता। यहाँ आना और कुछ दिन ठहर वापस लौट जाना होता है, शहर में ज़माने में, समाज में।