बिन परों का परिंदा

क्या आपने कभी धरती को ऊपर से देखा है?  नहीं नहीं, मैं विमान यात्रा वाली ऊँचाई की बात नहीं कर रहा। जब आप विमान में ऊपर उठते हैं तो क़रीब से आपको धरती नहीं केवल कंक्रीट के ढाँचे दिखते हैं और फिर आप पलक झपकते ही इतना ऊपर उठ जाते हैं कि धरती से दूरContinue reading “बिन परों का परिंदा”

सफलता या सजगता?

मैं और आप हर दिन बदल रहे हैं। हम सभी आगे की ओर बढ़ रहे हैं। हर देश प्रगति की ओर अग्रसर है। मानव धरती से ऊँचा उठ, चाँद से होता हुआ ब्रहस्पति को पार कर अरुण (Uranus) ग्रह तक जा पहुँचा है। मगर इस यात्रा का परिणाम क्या है?  पैदा होने से जीवन के अंतContinue reading “सफलता या सजगता?”

पहाड़ से शहर को चिट्ठी

दिल में दबा मैं सब कुछ तो तुम्हें कभी कह ना सका मगर इस पत्ते को आज गाँव के बग़ल से होती हुई पहाड़ से शहर की ओर बहती नदी में बहा दे रहा हूँ। शायद तुम अब भी शाम ढले यमुना किनारे डूबते सूरज को देखने जाती होगी। किसी शाम जब किनारे पर नदी के पानी पैर ड़ुबाए बैठी होगी तो मेरी ये सूखी चिट्ठी तुम्हारे पैरों से आ लगेगी। उम्मीद है…

यादों का हाथ

तीसरे, से चौथे आयाम को जोड़ मैं असल दुनिया और नींद की दुनिया के बीच कहीं झूलता हुआ सुबह का इंतज़ार करने लगा। ना जाने वो सपना था या हक़ीक़त मगर मुझे अपनी उँगलियों की नोक पर तुम्हारे छुअन की गर्माहट महसूस हुई, जैसे तुमने मेरी उँगलियों के सिरे पर अपनी उँगलियों  के सिरे  रख दिये हों। मेरा रोम रोम सिहर उठा। क्या किसी दूसरे आयाम में तुमने भी मेरी ओर हाथ बढ़ाया था?

रविवार की सुबह

वाह! क्या ख़ुशबू है। ना जाने क्यूँ आइने के सामने बैठ कर चाय का स्वाद बढ़ जाता है। पत्ति, लौंग, इलायची और अदरक तो सब बराबर ही डलता है फिर ये अलग स्वाद कहाँ से आता है? क्या ये शक्कर का स्वाद है? या आइने का? या शायद ये रविवार की सुबह का स्वाद है।

मेरी खिड़की

मेरे मन में ख़याल आता है कि अरे! मैं रंगों को छू सकता हूँ। मारे ख़ुशी के मैं सारे कपड़े उतार देता हूँ और अपने पूरे शरीर पर रंगों की धारियाँ को छूने लगता हूँ। मेरा रोम रोम सात रंगो की धारियों से भरा पड़ा है। मैं समझ नहीं पाता कि मैंने रंगों को ओढ़ लिया है या मैं खुद रंगों से बना हूँ। 

शब्दों का स्वाद

शब्द उबल उबल कर,
अंदर ही अंदर पकने लगते हैं,
शब्दों की सीटी बजने लगती है,
कभी छोले की मिठास सी कविता पकती है,
तो कभी राजमा की खट्टास सा छंद,
गाहे बगाहे कहानी की कोई तरकारी भी पक जाती है।

Kitna mushkil hai Siddharth ka Buddha ho jaana?

बुद्ध – एक नाम जो पूरे संसार में प्रचलित है। एक इंसान जिसने विश्व कल्याण में पूरा जीवन लगा दिया और अपने ज्ञान से भगवान का दर्ज़ा पा लिया। कहते हैं संसार सिर्फ़ आपकी उपलब्धियों को याद रखता है और संघर्षों को भुला देता है। जैसे संसार ने बुद्ध के होने में सिद्धार्थ को भुलाContinue reading “Kitna mushkil hai Siddharth ka Buddha ho jaana?”

किताब

शादी के बरसों बाद आज घरआई थी मैं। पता ही नहीं चला के कैसे बरसों बीत गए, बीते कुछ सालों को जिया तो है मैंने मगर महसूस नहीं किया। सुना था शादी के बाद लड़की का घर पराया हो जाता है। पर नहीं पता था कि इस कदर पराया हो जाता है जैसे बचपन काContinue reading “किताब”

Two Ducks

It was my first day in the new office. The day, when I saw her for the first time. I don’t remember anything else from that particular day but I still remember that moment, that corner seat, her half-turned neck at my entry, that frisk moment of her straight hair, an innocent mole resting onContinue reading “Two Ducks”